रक्षण (संज्ञा)
विपत्ति, आक्रमण, हानि, नाश आदि से बचाने की क्रिया।
रूपरेखा (संज्ञा)
किसी बनाए जाने वाले रूप या किए जाने वाले काम का वह स्थूल अनुमान जो उसके आकार-प्रकार आदि का परिचायक होता है।
लालन-पालन (संज्ञा)
भोजन, वस्त्र आदि देकर जीवन रक्षा करने की क्रिया।
प्रारब्ध (संज्ञा)
वह निश्चित और अटल दैवी विधान जिसके अनुसार मनुष्य के सब कार्य पहले ही से नियत किये हुए माने जाते हैं और जिसका स्थान ललाट माना गया है।
अति सूक्ष्म (विशेषण)
जो अत्यधिक सूक्ष्म हो।
फुवारा (संज्ञा)
वह मानवकृति जिसमें से ऊपरी दबाव के कारण जल की पतली धार या छींटे जोर से निकलकर चारों ओर गिरते हैं।
जबड़ा (संज्ञा)
मुँह में ऊपर नीचे की हड्डियों में से प्रत्येक जिसमें दाँत उगे होते हैं।
गिद्ध (संज्ञा)
एक बड़ा दिनचर शिकारी पक्षी जो प्रायः मरे हुए पशु-पक्षियों के मांस का भक्षण करता है।
उपेक्षित (संज्ञा)
वह व्यक्ति जिसकी उपेक्षा की गई हो या जिस पर ध्यान न दिया गया हो।
क्षुधा (संज्ञा)
भोजन की शारीरिक आवश्यकता।